Friday, September 30, 2011

प्रधान मंत्री के नाम ब्रिटेन के मुस्लिम भारतीयों का पत्र

दैनिक  उर्दू  सहारा (२९/९/२०११)  
 ब्रिटेन की कौंसिल ऑफ़ इंडियन मुस्लिम्स यू. के ने लिखा प्रधान मंत्री को पत्र 

डॉ मनमोहन सिंह 
प्रधान मंत्री,भारत
नई दिल्ली

महोदय प्रधान मंत्री,
                              हम लोग गोपाल गढ़ में हुए मुसलमानों के हत्या कांड से बहुत ज्यादा आश्चर्य चकित हैं-इसके अतिरिक्त इस जघन्य हत्या कांड में पुलिस कर्मियों की भागीदारी और भी आश्चर्य का विषय है-किस तरह खून के प्यासे पुलिस वाले घुसे और नमाज़ के दौरान नमाजियों पर गोलियां बरसाईं-
मिस्टर प्राइम मिनिस्टर हम वास्तव में ऊहापोह में हैं कि किस प्रकार अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करें कि तुरंत राज्य के मुख्य मंत्री श्री अशोक गहलौत ने हत्या में शामिल पुलिस कर्मियों के स्थानांतरण का आदेश दे दिया और सी बी आई जाँच के आदेश पारित कर दिए, यद्धपि भारत के परिपेक्ष्य में इस की सच्चाई पर भरोसा और विश्वास करना बहुत मुश्किल है-इसके बावजूद हम उनके कृतज्ञ हैं कि उन्हों ने अपनी कर्मठता का परिचय देते हुए मामले को तुरंत संज्ञान में लिया-
मिस्टर प्राइम मिनिस्टर दुर्भाग्य  से इतिहास की रौशनी में देखें तो देश के विभिन्न भागों में जितने भी मुस्लिम  विरोधी दंगे हुए हैं इन में से किसी की जाँच का कोई मतलब और महत्त्व नहीं है-सर्कार के दफ्तर में कई इन्क्वाइरी कमीशन और रिपोर्टें पहले से जमा हैं, जिन में अभियुक्तों के नाम और विवरण दर्ज हैं और इन में ये भी लिखा है कि इस तरह कि अपराधिक घटनाओं को भविष्य में न दोहराया जाए-लेकिन दुख कि बात है कि आज़ादी के ६३ वर्ष गुजरने के बाद भी मुस्लिम शत्रुता रखने वाले खाकी वर्दी में मौजूद गैंग मुसलमानों को उत्पीडित करते ,क़त्ल करते और उन पर आतंकवादी होने के आरोप लगाते हैं.साथ ही उनकी संपत्ति लूट ली जाती है और महिलाओं की इज्ज़त से खिलवाड़ किया जाता है- 
मिस्टर प्राइम मिनिस्टर मैं फिर से इस पत्र के माध्यम से वही दोहराना चाहता हूँ जो मैं ने २००४ में आपको चुनावी जीत की बधाई देते समय लिखा था-इसके बाद मैं दोबारा आपको संबोधित कर रहा हूँ-१९८४ के दंगों के बाद खुशवंत सिंह ने सन्डे मैगजीन में एक लेख लिखा था और ये स्वीकार किया था की १९८२ के मुरादाबाद दंगों में मुसलमानों की भावनाएं कैसी आहत रही होंगी-दुख के साथ कहना पड़ता है कि मुरादाबादअंतिम मुस्लिम विरोधी दंगा नहीं था,बल्कि ऐसे द्रश्य समय समय पर देश के सामने आते रहे.मेरठ और भागलपुर की भयानक घटनाएं इसका उदाहरण हैं, और गुजरात दंगों के दौरान ज़ुल्म और हिंसा का पूर्व का रिकॉर्ड टूट गया-खुशवंत सिंह की तरह शैक्षिक प्रष्ट भूमि रखने के कारण आप इन घटनाओं से अवश्य परिचित होंगे जिनका सामना भारत के मुसलमान करते रहे हैं-
गुजरात में मुसलमानों के क़त्ल ए आम के बाद भी मुस्लिम हत्याओं की विभिन्न घटनाएं हुई हैं-जिन में पुलिस के अहलकार और सरकार नाकाम रहे हैं.और मुसलमानों के खून की नदियाँ बहती रही हैं.बच्चे अनाथ होते रहे ,औरतें विधवा होती रहीं और नौजवानों को बग़ैर किसी अपराध के सलाखों के पीछे डाल दिया गया.
मिस्टर प्राइम मिनिस्टर बहुत ही सीधे शब्दों में कहना चाहता हूँ कि निकम्मे पुलिस कर्मी अत्यधिक भय का वातावरण पैदा कर रहे हैं.-इस रिपोर्ट के मुताबिक जो गोपाल गढ़ घटना के सम्बन्ध में प्राप्त हुई है,कि मुसलमानों पर क्या गुजरी और हम स्वयं को पूरी तरह लाचार और बेबस समझते रहे-जब पुलिस गोली चलाने वाले गूजरों के साथ शामिल हो गई,हम ने घटना स्थल से भाग कर अपनी जिंदगियां तो बचा लीं,लेकिन घटना स्थल से भाग कर ,तालाबों में कूद कर, लेकिन ये स्पष्ट था कि नमाजियों पर गूजरों और पुलिस वालों की ओर से फायरिंग की गई- जिस से ज़्यादातर लोगों ने घटना स्थल पर ही दम तोड़ दिया.यही नहीं लोगों को आग में भी जलाया गया-
मिस्टर प्राइम मिनिस्टर सरकार द्वारा गठित एजेंसियों पर से अब मुसलमानों का विश्वास उठ चुका है-
* सभी छोटे और बड़े अधिकारी जो निर्दोष मुसलमानों कि हत्या में शामिल हैं ,उन्हें चिन्हित करके उनके पद  से बर्खास्त किया जाए-दोषी  अधिकारीयों के निलंबन और स्थानांतरण का खेल ,जो १९४७ से जारी है उसका कोई मतलब नहीं है-क्योंकि मुस्लिम शत्रुता रखने वाले अधिकारी देश के संविधान का उल्लंघन करने से बाज़ आए हैं और न ही ऐसी सजा से अपेक्षित उद्देश्य पूरा होता है-
* गोपाल गढ़ के मुस्लिम विरोधी दंगे में मारे गए लोगों के आश्रितों को सरकारी नौकरी दी जाए जैसा कि राज्य सरकार ने वादा किया था- मुआवज़े  की राशि50000 रूपए से बढ़ा कर एक करोड़  की जाए जिसकी घोषणा  मुख्य  मंत्री अशोक गहलोत ने की है-
* सच्चर कमेटी की सिफारिशों को तुरंत क्रियान्वित किया जाए,मुसलमानों को पुलिस और अन्य  संगठनों में प्रभावी प्रतिनिधित्व दिया जाए- 
* बेशर्मी की सीमा तक असभ्य ऐसी भारतीय पुलिस को विशेष प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वह भारतीय नागरिकों के साथ जाति और धर्म से ऊपर उठ कर मानवतावादी व्यवहारअपना सके- दुर्भाग्य से उपनिवेश वाद के उपरांत आज़ादी और २००१ के आज़ाद भारत में भारतीय पुलिस का क्रिया कलाप ऐसा रहा है जैसा कि किंग एडवर्ड षष्टम के फौजियों का १८५७ में रहा था-जिनका उद्देश्य भारतीय नागरिकों को अपमानित करना,उन्हें तहस नहस करना और उनके हौसलों को पस्त करना था-
एम मुनाफ जीना
चेयर मैन
 कौंसिल ऑफ़ इंडियन मुस्लिम्स यू. के
   

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