(ज़किया जाफरी के नाम)
तमाम शहर तो पाबंद है गवाही का
किसे यकीन दिलाओगे बेगुनाही का
हमारी आँख से दुनिया ने रौशनी पाई
हमीं पे जुर्म भी आएद है कम निगाही का
ज़मीर बिक गया दुनिया न मिल सकी फिर भी
अज़ाब यूँ भी हुआ करता है इलाही का
कभी तो रात के सीने से नूर फूटे गा
कहीं तो टूटेगा ये सिलसिला सियाही का
वो जिनके फैज़ ए करम से अज़ाब उतरा था
उन्हें भी रन्ज है आमिर मेरी तबाही का
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