Saturday, October 22, 2011

कर्नल मुअम्मर गद्दाफी की मौत और सांप्रदायिक भारतीय मीडिया

लगभग एक माह पहले जब लीबिया में कर्नल मुअम्मर गद्दाफी और विरोधियों के बीच घमासान लड़ाई चल रही थी, भारत के एक हिंदी समाचार पत्र ने एक खबर पर ये हेड लाइन लगाईं थी-"सद्दाम की मौत मारा जाएगा गद्दाफी"-ये हेड लाइन मुस्लिम शत्रुता से ग्रसित उस घिनौनी मानसिकता को प्रकट करती है जो हमारे हिदी प्रेस और टी वी चैनलों की पहचान बन चुकी है- 
कर्नल मुअम्मर गद्दाफी तानाशाह थे ,राष्ट्रअध्यक्ष थे,या जनप्रिय नेता थे ये एक अलग बहस हो सकती है, लेकिन  किसी भी देश के शासक के लिए इतनी गन्दी और विकृत भाषा जो आज हिंदी अख़बार और भारतीय टी वी चैनल प्रयोग कर रहे हैं अत्यंत दुखद और निंदनीय है-ये बात समझ से परे है कि किसी ऐसे देश का गृह युद्ध जो भारत का न मित्र रहा हो न शत्रु उसके किसी नेता या शासक के बारे में अपशब्द कहना या ऐसी भाषा का प्रयोग करना जो अपराधियों के लिए इस्तेमाल की जाती है ,कहाँ तक उचित है-
अगर हम हिंदी अख़बारों की हेड लाइंस देखें या समाचार चैनलों की भाषा सुनें तो हर जगह मारा गया, छुप गया,खदेड़ा गया, जीवन की भीख मांगने लगा जैसे शब्दों का प्रयोग नज़र आता है- आखिर कर्नल मुअम्मर गद्दाफी से भारत या इन निरंकुश अखबारों और चैनलों की क्या शत्रुता थी, या उन्हों ने आप के खिलाफ क्या अभियान चलाया था कि आप अमरीका और यूरोपी देशों की चाटुकारिता के लिए इस भाषा शैली का इस्तेमाल कर रहे हैं-कारण बिलकुल स्पष्ट है आपको हर मुस्लिम नाम के साथ कुत्सित भाषा इस्तेमाल करनी है चाहे उसके साथ आपका दूर का भी कोई सम्बन्ध न रहा हो-
अगर आप इसी खबर को उर्दू अख़बारों में पढेंगे तो वहां न सिर्फ सभ्य भाषा का इस्तेमाल मिलेगा बल्कि उक्त घटना के बारे में समर्थकों , विरोधियों और निरपेक्ष देशों तथा व्यक्तियों के विचार भी पढने को मिलेंगे-और यही मीडिया की आचार संघिता (media ethics ) भी है की वह किसी खबर में खुद पक्षकार न प्रतीत हो-
हम अपने समस्त देशवासियों का ध्यान मीडिया की इस विकृत मानसिकता की ओर दिला कर ऐसे सभी अख़बारों और चैनलों की निंदा करते हैं जो हर खबर को हिन्दू मुलिस्म चश्मा लगा कर देखती है. 
 कर्नल मुअम्मर गद्दाफी की मौत के सम्बन्ध में रोजनाम सहारा उर्दू की खबर की कटिंग नीचे प्रस्तुत है जिस से  बखूबी अंदाज़ा होता है की उर्दू प्रेस आम तौर से इस घटना को किस रूप में देखता है-
 गद्दाफी की मौत पर इस्लामी दुनिया सकते में ,एमनेस्टी जाँच की मांग/लाश की बेहुरमती से अरब दुनिया में ग़ुस्सा/अफ्रीकी मीडिया ने म्रत्यु को हत्या कहा 
    

Friday, September 30, 2011

प्रधान मंत्री के नाम ब्रिटेन के मुस्लिम भारतीयों का पत्र

दैनिक  उर्दू  सहारा (२९/९/२०११)  
 ब्रिटेन की कौंसिल ऑफ़ इंडियन मुस्लिम्स यू. के ने लिखा प्रधान मंत्री को पत्र 

डॉ मनमोहन सिंह 
प्रधान मंत्री,भारत
नई दिल्ली

महोदय प्रधान मंत्री,
                              हम लोग गोपाल गढ़ में हुए मुसलमानों के हत्या कांड से बहुत ज्यादा आश्चर्य चकित हैं-इसके अतिरिक्त इस जघन्य हत्या कांड में पुलिस कर्मियों की भागीदारी और भी आश्चर्य का विषय है-किस तरह खून के प्यासे पुलिस वाले घुसे और नमाज़ के दौरान नमाजियों पर गोलियां बरसाईं-
मिस्टर प्राइम मिनिस्टर हम वास्तव में ऊहापोह में हैं कि किस प्रकार अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करें कि तुरंत राज्य के मुख्य मंत्री श्री अशोक गहलौत ने हत्या में शामिल पुलिस कर्मियों के स्थानांतरण का आदेश दे दिया और सी बी आई जाँच के आदेश पारित कर दिए, यद्धपि भारत के परिपेक्ष्य में इस की सच्चाई पर भरोसा और विश्वास करना बहुत मुश्किल है-इसके बावजूद हम उनके कृतज्ञ हैं कि उन्हों ने अपनी कर्मठता का परिचय देते हुए मामले को तुरंत संज्ञान में लिया-
मिस्टर प्राइम मिनिस्टर दुर्भाग्य  से इतिहास की रौशनी में देखें तो देश के विभिन्न भागों में जितने भी मुस्लिम  विरोधी दंगे हुए हैं इन में से किसी की जाँच का कोई मतलब और महत्त्व नहीं है-सर्कार के दफ्तर में कई इन्क्वाइरी कमीशन और रिपोर्टें पहले से जमा हैं, जिन में अभियुक्तों के नाम और विवरण दर्ज हैं और इन में ये भी लिखा है कि इस तरह कि अपराधिक घटनाओं को भविष्य में न दोहराया जाए-लेकिन दुख कि बात है कि आज़ादी के ६३ वर्ष गुजरने के बाद भी मुस्लिम शत्रुता रखने वाले खाकी वर्दी में मौजूद गैंग मुसलमानों को उत्पीडित करते ,क़त्ल करते और उन पर आतंकवादी होने के आरोप लगाते हैं.साथ ही उनकी संपत्ति लूट ली जाती है और महिलाओं की इज्ज़त से खिलवाड़ किया जाता है- 
मिस्टर प्राइम मिनिस्टर मैं फिर से इस पत्र के माध्यम से वही दोहराना चाहता हूँ जो मैं ने २००४ में आपको चुनावी जीत की बधाई देते समय लिखा था-इसके बाद मैं दोबारा आपको संबोधित कर रहा हूँ-१९८४ के दंगों के बाद खुशवंत सिंह ने सन्डे मैगजीन में एक लेख लिखा था और ये स्वीकार किया था की १९८२ के मुरादाबाद दंगों में मुसलमानों की भावनाएं कैसी आहत रही होंगी-दुख के साथ कहना पड़ता है कि मुरादाबादअंतिम मुस्लिम विरोधी दंगा नहीं था,बल्कि ऐसे द्रश्य समय समय पर देश के सामने आते रहे.मेरठ और भागलपुर की भयानक घटनाएं इसका उदाहरण हैं, और गुजरात दंगों के दौरान ज़ुल्म और हिंसा का पूर्व का रिकॉर्ड टूट गया-खुशवंत सिंह की तरह शैक्षिक प्रष्ट भूमि रखने के कारण आप इन घटनाओं से अवश्य परिचित होंगे जिनका सामना भारत के मुसलमान करते रहे हैं-
गुजरात में मुसलमानों के क़त्ल ए आम के बाद भी मुस्लिम हत्याओं की विभिन्न घटनाएं हुई हैं-जिन में पुलिस के अहलकार और सरकार नाकाम रहे हैं.और मुसलमानों के खून की नदियाँ बहती रही हैं.बच्चे अनाथ होते रहे ,औरतें विधवा होती रहीं और नौजवानों को बग़ैर किसी अपराध के सलाखों के पीछे डाल दिया गया.
मिस्टर प्राइम मिनिस्टर बहुत ही सीधे शब्दों में कहना चाहता हूँ कि निकम्मे पुलिस कर्मी अत्यधिक भय का वातावरण पैदा कर रहे हैं.-इस रिपोर्ट के मुताबिक जो गोपाल गढ़ घटना के सम्बन्ध में प्राप्त हुई है,कि मुसलमानों पर क्या गुजरी और हम स्वयं को पूरी तरह लाचार और बेबस समझते रहे-जब पुलिस गोली चलाने वाले गूजरों के साथ शामिल हो गई,हम ने घटना स्थल से भाग कर अपनी जिंदगियां तो बचा लीं,लेकिन घटना स्थल से भाग कर ,तालाबों में कूद कर, लेकिन ये स्पष्ट था कि नमाजियों पर गूजरों और पुलिस वालों की ओर से फायरिंग की गई- जिस से ज़्यादातर लोगों ने घटना स्थल पर ही दम तोड़ दिया.यही नहीं लोगों को आग में भी जलाया गया-
मिस्टर प्राइम मिनिस्टर सरकार द्वारा गठित एजेंसियों पर से अब मुसलमानों का विश्वास उठ चुका है-
* सभी छोटे और बड़े अधिकारी जो निर्दोष मुसलमानों कि हत्या में शामिल हैं ,उन्हें चिन्हित करके उनके पद  से बर्खास्त किया जाए-दोषी  अधिकारीयों के निलंबन और स्थानांतरण का खेल ,जो १९४७ से जारी है उसका कोई मतलब नहीं है-क्योंकि मुस्लिम शत्रुता रखने वाले अधिकारी देश के संविधान का उल्लंघन करने से बाज़ आए हैं और न ही ऐसी सजा से अपेक्षित उद्देश्य पूरा होता है-
* गोपाल गढ़ के मुस्लिम विरोधी दंगे में मारे गए लोगों के आश्रितों को सरकारी नौकरी दी जाए जैसा कि राज्य सरकार ने वादा किया था- मुआवज़े  की राशि50000 रूपए से बढ़ा कर एक करोड़  की जाए जिसकी घोषणा  मुख्य  मंत्री अशोक गहलोत ने की है-
* सच्चर कमेटी की सिफारिशों को तुरंत क्रियान्वित किया जाए,मुसलमानों को पुलिस और अन्य  संगठनों में प्रभावी प्रतिनिधित्व दिया जाए- 
* बेशर्मी की सीमा तक असभ्य ऐसी भारतीय पुलिस को विशेष प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वह भारतीय नागरिकों के साथ जाति और धर्म से ऊपर उठ कर मानवतावादी व्यवहारअपना सके- दुर्भाग्य से उपनिवेश वाद के उपरांत आज़ादी और २००१ के आज़ाद भारत में भारतीय पुलिस का क्रिया कलाप ऐसा रहा है जैसा कि किंग एडवर्ड षष्टम के फौजियों का १८५७ में रहा था-जिनका उद्देश्य भारतीय नागरिकों को अपमानित करना,उन्हें तहस नहस करना और उनके हौसलों को पस्त करना था-
एम मुनाफ जीना
चेयर मैन
 कौंसिल ऑफ़ इंडियन मुस्लिम्स यू. के
   

Saturday, September 24, 2011

वो हमारे ज़ख्मों पर नमक छिड़क रहे हैं /एहसान जाफरी के पुत्र तनवीर जाफरी का इंटरव्यू


उर्दू दैनिक सहारा(२३/९/११) 
वो हमारे ज़ख्मों पर नमक छिड़क रहे हैं 
पूर्व सांसद एहसान जाफरी के तनवीर जाफरी अपनी बूढी और मजलूम माँ के साथ अपने पिता और ६९ व्यक्तियों की हत्या के दोषियों को उनके अंजाम तक पहुँचाने और न्याय पाने के लिए प्रयत्न शील हैं-तनवीर जाफरी आर एस एस और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा नरेन्द्र मोदी की छवि सुधारने की कोशिश पर सहारा संवाददाता के साथ बात चीत कर रहे हैं-

नरेन्द्र मोदी के सदभावना उपवास पर आपकी क्या राय है?
वो मेरी माँ ज़किया जाफरी की विशेष याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के हाल में दिए निर्णय को अपनी जीत बता कर ये साबित कर रहे थे कि उनको सुप्रीम कोर्ट ने क्लीन चिट दे दी है , वो अपने उपवास के द्वारा अपनी जीत का जशन मना रहे हैं -वो राज्य के मुख्य मंत्री हैं जो चाहे करें वो मालिक हैं राज्य के-लेकिन उनका ये सोचना बिलकुल ग़लत है कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें क्लीन चिट दी है-
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से उन्हें राहत नहीं मिली है ?
नहीं ऐसा नहीं है - वास्तव में वो और उनकी पार्टी दंगा पीड़ितों के ज़ख्मों पर नमक छिड़क रहे हैं-सुप्रीम कोर्ट का निर्णय हमारे लिए राहत है-ये हम ने अदालत से अपील की थी क़ि वह सामूहिक हत्या कांड में मोदी क़ि भूमिका की जाँच करे -इस सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर निर्णय करने का अधिकार स्थानीय अदालत को दे दिया है-सुप्रीम कोर्ट ने ये नहीं कहा है कि इस मामले में आगे जाँच या सुनवाई की आवश्यकता नहीं है और नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट तो दी ही नहीं है-
 सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण का और पर्यवेक्षण करने से इंकार किया है?
मगर सुप्रीम कोर्ट ने एस आई टी से कहा है कि वह अपनी रिपोर्ट अहमदाबाद की अदालत में प्रस्तुत करे-अब गुलबर्ग सोसाइटी केस की सुनवाई अहमदाबाद की स्थानीय अदालत में होगी-
अगर वह अपनी कथनी और करनी पर ग्लानि प्रकट करते हैं तो?
तीन दिनों के उपवास में उन्हों ने जो भाषा और बोडी लैन्गुऐज इस्तेमाल की है उस से किसी तरह नहीं लगता कि उन्हें अपने किये पर कोई ग्लानि है -वास्तव में आर एस एस अपनी एक खुली रण निति के द्वारा और मीडिया के एक सेक्शन के द्वारा ये वातावरण बना रहा है कि आज नहीं तो कल वह माफ़ी मांग कर जिम्मेदारियों से अपना पल्ला झाड़ लें गे-

अगर वह माफ़ी मांगते हैं तो क्या गुजरात के मुस्लमान उन्हें माफ़ कर दें गे?
२००२ के मुसलमानों के क़त्ल ए आम पर उनको ज़रा भी अफ़सोस नहीं है-ये किस तरह कहा जाता है कि उन्हें ग्लानि है और वह माफ़ी मांग लें गे-यह संभव नहीं कि गुलबर्ग सोसयटी में ६९ जिंदा जला दिए जाएं और उन्हें इसकी सूचना न हो-इसके अलावा सोहराबुद्दीन एनकाउन्टर,हीरेन पांडिया मर्डर,इशरत जहाँ सादिक जमाल एनकाउन्टर केस -किस किस हत्या किस किस क़त्ल ए आम और किस किस फर्जी एनकाउन्टर से पल्ला झाड़ें गे नरेन्द्रे मोदी?
आपकी नज़र में इस उपवास का उद्देश्य ग्लानि प्रकट करना है या प्रधान मंत्री बनने की इच्छा प्रकट करना?
गुजरात में किसी पीड़ित को न्याय नहीं मिला-बिलकीस बानो को उस वक़्त इन्साफ मिल सका जब केस गुजरात से महाराष्ट्र ट्रांसफर हुआ-बेस्ट बेकरी घटना का मुक़दमा राज्य से बाहर चला-गुजरात में हर ईमानदार और कर्तव्य निष्ठ अधिकारी को परेशान किया जा रहा है, हर भ्रष्ट और ज़ालिम अधिकारी को नवाज़ा जा रहा है-उनके किसी कथन से या व्यवहार से प्रकट होता है की नरेन्द्र मोदी को ग्लानि है?उनके प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई  उन्हें राज धर्म की शिक्षा दे चुके हैं मगर अभी तक उन्हों ने इस शिक्षा पर अमल नहीं किया है-यह सब कुछ राजनैतिक ढोंग के अलावा कुछ नहीं है-

Tuesday, September 20, 2011

बटला हाउस एनकाउन्टर के विरोध में उमड़ा जन सैलाब

(दैनिक सहारा उर्दू २०/९/११)
बटला हाउस एनकाउन्टर की जाँच हक की आवाज़ 
हिन्दू मुस्लिम सबकी आवाज़ मजलूमों को मिले इन्साफ 
जनता के गगन चुम्बी नारों से जंतर मंतर गूँज उठा 
नई दिल्ली ,बटला हाउस एनकाउन्टर की तीसरी बरसी के मौके पर आज राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल के तत्वाधान में जंतर मंतर पर एक ज़बरदस्त रैली का आयोजन किया गया जिस में उत्तर प्रदेश, दिल्ली और कई राज्यों से हजारों की संख्या में आए लोगों ने भाग लिया-रैली में सरकार से मांग की गई कि बटला हाउस एनकाउन्टर कि न्यायिक जाँच करा के दोषियों को कड़ी सजा दी जाए,आतंकवाद की सभी घटनाओं की निष्पक्ष जाँच के लिए एक आयोग गठित किया जाए-एनकाउन्टर में शहीद आतिफ और साजिद को इंसाफ दिलाया जाए-फर्जी मामलों में जेलों में बरसों से बंद मुस्लिम नौजवानों को रिहा किया जाए -न्यायलय से निर्दोष करार दिए गए नौजवानों को मुआवजा दिया जाए तथा उनके पुनर्वास के लिए कार्यवाही की जाए-मीडिया को बे गुनाह मुसलमानों की छवि बिगाड़ने की हरकतों से रोका जाए -रैली में भरत पुर के गोपाल गढ़ में मुसलमानों की जघन्य हत्याओं की भी निंदा की गई-रैली को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल के अध्यक्ष मौलाना आमिर रशदी ने कहा कि बटला हाउस एनकाउन्टर को तीन वर्ष हो गए लेकिन सरकार ने आज तक इस फर्जी एनकाउन्टर कि जाँच नहीं कराई----------मौलाना आमिर रशदी ने कहा कि अब तक आतंकवाद के आरोप में जितने भी  मुस्लिम नौजवानों को गिरफ्तार किया गया है उन में ९८ प्रतिशत से ज्यादा नौजवान अदालतों से बा इज्ज़त बरी हो चुके हैं -सरकार ऐसे तमाम नौजवानों को १०--१० लाख का मुआवजा अदा करे , इन्हें सरकारी नौकरी दे और इन्हें फर्जी मामलों में फंसाने वाले अधिकारीयों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करके दण्डित किया जाए-------------------------------


Monday, September 19, 2011

मर के भी चैन न पाया

मरने वाले इन्सान नहीं होते
न मौत की खबर सुन कर
रद्दे अमल ज़ाहिर करने वाले
इंसानी जानों का नुकसान
होता है
एक दिचास्प वाकिया
या महज़ एक खबर
अगर
मरने वाला ताल्लुक रखता हो
दूसरे कबीले से
हैरत है
कि दर्द की भी कौम होती है?
और आंसुओं का भी मज़हब?
अगर इज़हार ए ग़म के लिए
ज़रूरी है
हादसे के शिकार लोगों का हम मज़हब होना
तो बेहतर है
कि हम मजहबों को
उठा कर फ़ेंक दें समंदर में
ताकि
इंसानों कि तरह
इंसानों कि मौत पर
रो तो सकें 
(नज़्म----डॉ आमिर रियाज़) 

Sunday, September 18, 2011

(ज़किया जाफरी के नाम) 

तमाम  शहर  तो  पाबंद  है  गवाही  का 
किसे  यकीन  दिलाओगे  बेगुनाही  का

हमारी आँख से दुनिया ने रौशनी पाई
हमीं पे जुर्म भी आएद है कम निगाही का

ज़मीर बिक गया दुनिया न मिल सकी फिर भी
अज़ाब  यूँ  भी  हुआ  करता  है  इलाही  का

कभी  तो  रात  के  सीने से  नूर  फूटे गा
कहीं तो टूटेगा ये सिलसिला सियाही का

 वो जिनके फैज़ ए करम से अज़ाब उतरा था
उन्हें  भी  रन्ज है आमिर मेरी तबाही का 

Wednesday, September 14, 2011

खबर जो सरकार तक नहीं पहुंची

उत्तर प्रदेश में सरकार बड़ी या नौकर शाही 
उत्तर प्रदेश में शासन की बाग़ डोर मंत्री मंडल के हाथ में है या नौकर शाहों के हाथ में? ये कहना बहुत मुश्किल है-विशेष कर जब मामला भाषाई या धार्मिक अल्पसंख्यकों का हो तो नौकरशाही सरकार तक सही बात पहुँचने ही नहीं देती-आम आदमी तो बहुत दूर की बात है खुद मुख्य मंत्री के अधीन आने वाले विभागों की खबर तक को यहाँ के नौकर शाह मुख्य  मंत्री तक पहुँचने नहीं देते-इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि १३ अप्रैल २०११ को उर्दू के लगभग सभी अख़बारों ने खुद मुख्य मंत्री के अधीन आने वाले भाषा विभाग के सम्बन्ध में ये चौंकाने वाली खबर छपी थी कि उक्त विभाग के सम्बन्ध में कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णय को सचिवालय के निर्भीक अधिकारिओं ने लागु करने के बजाए उक्त निर्णय को ही सिर्फ इस लिए बदल दिया क्यूँ कि इससे उर्दू भाषा के कर्मचारियों को लाभ पहुँच रहा था-
विधान सभा के इतिहास में ये पहली घटना थी कि अधिकारीयों ने  कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णय को अपनी सीमा से बाहर जा कर परिवर्तित कर दिया हो-सारे उर्दू अख़बार इस खुली धांधली  पर चीख उठे मगर सरकार ने पांच महीने गुज़र जाने के बाद भी आज तक किसी अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ अनुशासन हीनता की कोई कार्यवाई नहीं की-
 सरकार का इस घटना को अंजाम देने वाले उद्दंड अधिकारीयों/कर्मचारियों के विरुद्ध कोई दंडात्मक कार्यवाही न करना इस बात को इंगित करता है कि उर्दू अख़बारों में छपी इतनी महत्वपूर्ण खबर को नौकरशाहों और सूचना कर्मियों ने मुख्य मंत्री मायावती तक पहुँचने ही नहीं दिया-ये पूरा प्रकरण सरकार के सूचना तंत्र और उर्दू जानने वाले पार्टी पदाधिकारियों पर भी प्रश्न चिन्ह लगता है-
हम यहाँ इस सम्बन्ध में उर्दू के प्रमुख अखबारों में छपी खबर का हिंदी अनुवाद मूल खबर के साथ इस उम्मीद के साथ  प्रकाशित कर रहे हैं कि ये खबर मुख्य मंत्री मायावती तक किसी बिचौलिए के बग़ैर पहुँच जाए और वो बसप सरकार को बदनाम करने वाले सांप्रदायिक अधिकारीयों/कर्मचारियों को दण्डित करने के साथ साथ भाषा उर्दू के कर्मियों को न्याय प्रदान कर सकें-प्रस्तुत है मूल खबर तथा उसका  हिंदी अनुवाद---
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